रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण बन रहे हालातों से आपकी जेब पर भारी असर पड़ने की आशंका है. स्मार्ट वॉच हो या कपड़े धोने वाली वाशिंग मशीन. आपकी गाड़ी हो या घंटों इस्तेमाल में आना वाला लैपटॉप. तकनीक के वो सभी गैजेट जिन्होंने हमारी, आपकी जिंदगी को सरल बनाया है, वो चिपसेट यानी सेमीकंडक्टर की बदौलत बनाया है. तकनीक से जुड़ी रोजमर्रा की ये सभी चीजें अब महंगी होने की आशंका है. वजह है यूक्रेन-रूस के बीच हो रहा युद्ध. आप सोच रहे होंगे कि आखिर इसका यूक्रेन और रूस के बीच हो रहे युद्ध से क्या लेना देना है?
दरअसल सभी गैजेट, गाड़ी, घड़ी में इस्तेमाल होने वाले चिप्स बनते केवल विश्व के 3 देशों में हैं. हालांकि इसका रॉ मटीरियल ज्यादातर यूक्रेन और रूस में बनता है. चिपसेट यानी सेमी कंडक्टर की कमी पहले से ही दुनिया में होना शुरू हो गई थी, अब इसके और बढ़ने की आशंका है. MAIT के सीईओ जॉर्ज पॉल बताते हैं कि यूक्रेन और रूस के बीच हो रहे युद्ध के कारण यूक्रेन की निर्यात क्षमता कम हो रही है.
इन चीजों पर पड़ेगा असर
रूस के ऊपर आर्थिक प्रतिबंध के कारण भी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है. युद्ध के कारण यूक्रेन से जो मैटेरियल आता है, जैसे तेल, गैस यूरेनियम जैसी चीजों की सप्लाई पर प्रभाव पड़ेगा. इनमें से नियॉन, हीलियम, पैलेडियम सेमी कंडक्टर इंडस्ट्री के लिए जरूरी तत्त्व हैं. दुनियाभर में 70 परसेंट नियॉन यूक्रेन से आता है. दुनियाभर में 40 प्रतिशत पैलेडियम रूस से आता है. इनकी सप्लाई युद्ध के चलते बाधित होगी.
फ्रिज भी हो सकता है महंगा
ये सभी टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट में इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ या धातु हैं. नियॉन, हीलियम, पैलेडियम का उपयोग सेमीकंडक्टर बनाने के लिए होता है. सेमीकंडक्टर का उपयोग आज सभी प्रोडक्ट्स में होता है. वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव, फ्रिज, मोबाइल फोन, लैपटॉप इन सभी में सेमीकंडक्टर यूज होता है. ऑटो मोबाइल, डिस्प्ले: कंप्यूटर बनाने और टीवी बनाने पर इसका असर होगा. आजकल ऐसा कोई प्रोडक्ट नही जो सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल नहीं करता.
पूरे विश्व पर होगा असर
यूक्रेन और रुस से तेल, गैस जैसे कई प्रोडक्ट आते हैं. इसका असर पूरे विश्व पर होगा. भारत पर इसका कितना असर होगा ये कहना मुश्किल है, क्योंकि यह ग्लोबल चेन पर निर्भर करेगा. ये चीन रूट से सप्लाई नहीं होते हैं. सेमीकंडक्टर एक राज्य में बनता है तो प्रोडक्ट किसी और राज्य में. ये प्रोडक्ट का दिमाग होता है. Artifical इंटेलिजेंस इससे बाद की स्टेज है. भारत ने भी सेमीकंडक्टर बनाने को लेकर आत्मनिर्भर होने का फैसला लिया है, लेकिन इसके लिए 5 से 10 साल का सफर करना होगा. सेमीकंडक्टर बनाने वाले देश बहुत कम हैं. ज्यादातर इसे इंपोर्ट करते हैं.